जिंदगी गयी तेल लेने, और मौत जाये भाड में !!
कौन यहाँ रुका है , किसी की याद में !!
सूरज निकले सुबह, या चाँद निकले रात में
तुझे तो आखिर मिलना ही है , तेरी चिता की राख में
सुरेन्द्र
Dec 2012
जिंदगी गयी तेल लेने, और मौत जाये भाड में !!
कौन यहाँ रुका है , किसी की याद में !!
सूरज निकले सुबह, या चाँद निकले रात में
तुझे तो आखिर मिलना ही है , तेरी चिता की राख में
सुरेन्द्र
Dec 2012
कविता मैं grammar की गलतियाँ देख पाना भी एक कला है
और ताजमहल मैं मुमताज को महेसुस करना , ऐसे लोगो को मना है !!
भावना जहा पोहोच गयी , शब्द वहा सिर्फ एक बहाना है
तुम्हारे लिए जिंदगी एक सच्चाई , और हमारे लिए एक फ़साना है !!
सुरेन्द्र
Dec 2012
हर रोज मेरी जिंदगी थोड़ी और धुल खाती है
शायद इसीलिए हर रात मेरे दिमाग मैं एक नयी कविता आती है!!
कैसे बयां करू मैं अपने सपनो की मजबूरी ,
के उनमें भी हर वक़्त मुजे सच्चाई नजर आती है !!
सुरेन्द्र
दिसम्बर २०१२
This poem is about the horrible incidence that took place in Delhi and how we as a nation have reacted to it. This poem tries to showcase how we are reacting and how we can react.
ये कविता है दिल्ली मैं दिसम्बर २०१२ मैं घटी घटना और उसपर हमारी प्रतिकियाओं पर … हम बगावत कैसे कर रहे है और हम कैसे कर सकते है ये कहेने की एक कोशिश ….
चलो आज थोड़ी बगावत करते है
कोई एक फेसबुक स्टेटस हम भी शेयर करते है
किसी नेता को भी आज हम थोड़ी गलियां देते है
थोड़ी और हिम्मत हुई तो कही जा के मोमबत्तियां जलाते है
चलो आज थोड़ी बगावत करते है
हम भी फोटोशोप मैं कोई फोटो बना के शेयर करते है
कोई विडियो ढूंड के उस पे कमेंट करते है
थोड़ी और हिम्मत हुई तो किसी रैली मैं शामिल हो जाते है
चलो आज थोड़ी बगावत करते है
हम भी किसी चीज़ की शपथ लेते है
कोई पिटीशन ढूंड के उसे support करते है
और थोड़ी और हिम्मत हुई तो थोडी नारेबाजी हम भी कर लेते है
चलो आज थोड़ी और बगावत करते है
खुद को भी जरा हम आईने मैं देखते है
खुद से ही थोडा बदलाव हम शुरू करते है
और थोड़ी और हिम्मत हुई तो वक़्त आने पर हिम्मत भी दिखाते है
सुरेन्द्र
दिसम्बर २०१२