हर रोज मेरी जिंदगी थोड़ी और धुल खाती है
शायद इसीलिए हर रात मेरे दिमाग मैं एक नयी कविता आती है!!
कैसे बयां करू मैं अपने सपनो की मजबूरी ,
के उनमें भी हर वक़्त मुजे सच्चाई नजर आती है !!
सुरेन्द्र
दिसम्बर २०१२
हर रोज मेरी जिंदगी थोड़ी और धुल खाती है
शायद इसीलिए हर रात मेरे दिमाग मैं एक नयी कविता आती है!!
कैसे बयां करू मैं अपने सपनो की मजबूरी ,
के उनमें भी हर वक़्त मुजे सच्चाई नजर आती है !!
सुरेन्द्र
दिसम्बर २०१२